... साक्षी को मिलती मदद तो बच जाती जान, पत्थर दिल लोग, मुर्दा शहर और दम तोड़ती लड़की

ईंट, सीमेंट और कंक्रीट का ये जंगल कहने को शहर है, पर इस शहर का दिल भी उतना ही पत्थर है जितनी यहां की बेजान इमारतें। यहां की पथरीली सड़कें भी शायद उतनी पथरीली नहीं होगी जितना ये शहर पत्थर दिल है। 

... साक्षी को मिलती मदद तो बच जाती जान, पत्थर दिल लोग, मुर्दा शहर और दम तोड़ती लड़की
साहिल अपनी प्रेमिका को सरेआम मारता रहा और लोग तमाशा देखते रहे
... साक्षी को मिलती मदद तो बच जाती जान, पत्थर दिल लोग, मुर्दा शहर और दम तोड़ती लड़की

दिल्ली: करीब पौने दो करोड़ की आबादी वाले दिल्ली शहर में 16 साल की एक लड़की के जिस्म पर 40 बार वार किए जाते हैं। एक भारी पत्थर से उसके सीने, चेहरे और सिर को कुचला जाता है। इस दौरान वो लड़की गिड़गिड़ाती है, सिसकती है और चीखती है। उसी दौरान उस लड़की के बेहद करीब से 17 लोग गुजरते हैं, लेकिन इस मुर्दा शहर में एक भी जिंदा हाथ उस लड़की की मदद के लिए आगे नहीं आता। आगे की पूरी कहानी सुनकर किसी भी इंसान का कलेजा बैठ सकता है।

पत्थरदिल शहर की कहानी
ईंट, सीमेंट और कंक्रीट का ये जंगल कहने को शहर है, पर इस शहर का दिल भी उतना ही पत्थर है जितनी यहां की बेजान इमारतें। यहां की पथरीली सड़कें भी शायद उतनी पथरीली नहीं होगी जितना ये शहर पत्थर दिल है। इस शहर के लोग पत्थर के। लोगों के दिल पत्थर के। लोगों के घर पत्थर के। इसी पत्थर दिल शहर की एक पथरीली सड़क पर 16 साल की एक लड़की खंजर के चालीस घाव के बीच पत्थरों से कुचली जाती रही। जब तक दम था तड़पती रही। दम निकलने लगा, तो सिसकती रही। फिर आखिरी हिचकी के साथ सिसकियों ने भी दम तोड़ दिया। लेकिन क्या मजाल जो दो अदद इंसानी हाथ उसकी मदद के लिए आगे आते।

मुर्दा दिल्लीवालों की मुर्दा फितरत 
ये कहानी दिल्ली की एक लड़की की है। कहानी इश्क में पागल एक लड़के की है। और कहानी एक बार फिर पत्थरदिल दिल्ली की है। उस मुर्दा शहर दिल्ली की, जहां मुर्दों के बीच एक जिंदा मौत होती है। तारीखें बदलीं, वक्त बदला, जगह बदली, बस नहीं बदली तो मुर्दा दिल्ली वालों की मुर्दा फितरत। तमाशबीन तब थे, तमाशाई अब भी हैं। तमाशा देखनेवाले आगे भी होंगे। मौत पहले भी हुई, मौत आज भी हुई, मौत आगे भी होगी। पर कोई नहीं आएगा। आपकी मदद करने। कल किसी की बारी थी, आज इसकी बारी है। कल किसी और की होगी। मरनेवाला यूं ही सड़कों पर मर जाएगा या मर जाएगी, पर कोई नहीं आएगा आपकी मदद करने। क्योंकि आप दिल्ली में रहते हैं।